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Stock market में गिरावट की संभावना, विशेषज्ञों का अनुमान

Stock market में हाल के दिनों में एक तेज़ गिरावट देखी गई है, और अब कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह गिरावट और भी बढ़ सकती है। बाजार में इस गिरावट के प्रमुख कारण व्यापारिक शुल्क (tariff) संबंधित चिंताएँ, वैश्विक रुझान और विदेशी निवेशकों का पूंजी निवेश में कमी लाना हैं। आने वाले सप्ताह में भारतीय शेयर बाजार का रुख मुख्य रूप से अमेरिका के व्यापार शुल्क नीति, वैश्विक रुझान और विदेशी निवेशकों की गतिविधियों से तय होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि व्यापार शुल्क से संबंधित समस्याओं और विदेशी पूंजी के निकासी के कारण निवेशक भावना में कमजोरी आ सकती है, जिससे बाजार में नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

भारतीय शेयर बाजार की गिरावट का विश्लेषण

फरवरी महीने में ही, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का निफ्टी इंडेक्स 1,383.7 अंकों यानी 5.88 प्रतिशत की गिरावट के साथ बंद हुआ। इसी अवधि में, बीएसई सेंसेक्स भी 4,302.47 अंकों यानी 5.55 प्रतिशत गिर गया। पिछले वर्ष 27 सितंबर को सेंसेक्स ने अपने उच्चतम स्तर 85,978.25 अंक को छुआ था। तब से अब तक सेंसेक्स में 12,780.15 अंकों यानी 14.86 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। इसी तरह, निफ्टी ने 27 सितंबर 2024 के अपने उच्चतम स्तर 26,277.35 अंकों से 4,152.65 अंकों यानी 15.80 प्रतिशत की गिरावट दिखाई है।

पिछले सप्ताह की बात करें तो, बीएसई सेंसेक्स में 2,112.96 अंकों यानी 2.80 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि एनएसई निफ्टी में 671.2 अंकों यानी 2.94 प्रतिशत की कमी आई। यह गिरावट दर्शाती है कि भारतीय शेयर बाजार के सामने वर्तमान में आर्थिक और वैश्विक मोर्चे पर गंभीर चुनौतियाँ हैं, जो निवेशकों को चिंतित कर रही हैं।

Stock market में गिरावट की संभावना, विशेषज्ञों का अनुमान

वैश्विक व्यापार संकट और इसके प्रभाव

अमेरिका और अन्य प्रमुख देशों के बीच चल रहे व्यापारिक शुल्क विवाद से वैश्विक व्यापार पर गंभीर असर पड़ रहा है। व्यापार शुल्क को लेकर अनिश्चितता और विवाद ने निवेशकों में असमंजस पैदा कर दिया है, और यही कारण है कि शेयर बाजार में गिरावट का रुख बढ़ गया है। भारत के संदर्भ में, जहां विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की सक्रियता महत्वपूर्ण है, वहां उनके द्वारा की जा रही निकासी ने बाजार में दबाव डाला है।

आर्थिक विकास और निवेशकों की प्रतिक्रिया

हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था ने पिछले कुछ महीनों में सुधार देखा है, लेकिन फिर भी वर्तमान में इसके सामने कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। दिसंबर तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास दर 6.2 प्रतिशत रही, जो जुलाई-सितंबर तिमाही के 5.6 प्रतिशत से बेहतर है। लेकिन यह दर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के 6.8 प्रतिशत के अनुमान से कम है।

भारत की जीडीपी विकास दर में यह सुधार घरेलू खपत और आर्थिक गतिविधियों में मामूली वृद्धि का संकेत देता है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रही है। अमेरिकी व्यापार नीति और विदेशी निवेशकों की बेचैनी ने बाजार में अस्थिरता बढ़ा दी है।

जीएसटी संग्रह और संभावित सुधार

हालांकि, भारतीय बाजार में कुछ सकारात्मक संकेत भी मिले हैं। फरवरी महीने में Goods and Services Tax (GST) संग्रह में 9.1 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जो लगभग 1.84 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। यह संकेत देता है कि घरेलू खपत और आर्थिक सुधार की उम्मीदें बनी हुई हैं। फरवरी में केंद्रीय जीएसटी संग्रह 35,204 करोड़ रुपये, राज्य जीएसटी 43,704 करोड़ रुपये, एकीकृत जीएसटी 90,870 करोड़ रुपये और मुआवजा सेस 13,868 करोड़ रुपये रहे। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि भारतीय बाजार में एक आर्थिक सुधार की संभावना बनी हुई है, लेकिन साथ ही वैश्विक अस्थिरता से भी निपटना होगा।

निवेशकों के लिए क्या करें?

वर्तमान में, भारतीय शेयर बाजार में निवेश करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। व्यापार शुल्क की समस्याएँ, विदेशी निवेशकों का बिकवाली रुख और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता के कारण निवेशक काफी सतर्क हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले कुछ महीनों में भारतीय बाजार की स्थिति में सुधार हो सकता है, विशेष रूप से पहली तिमाही के दौरान कंपनियों के अच्छे परिणाम आने के बाद।

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर वैश्विक व्यापार मोर्चे पर अनिश्चितता कम होती है और घरेलू कंपनियों के लाभ में सुधार होता है, तो भारतीय बाजार में सुधार हो सकता है। निवेशकों को अपनी निवेश रणनीतियों को दीर्घकालिक दृष्टिकोण से देखना चाहिए और किसी भी स्थिति में अस्थिरता से बचने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए।

भारतीय शेयर बाजार में वर्तमान में अनिश्चितता और गिरावट की स्थिति बनी हुई है, जिसका प्रमुख कारण वैश्विक व्यापार शुल्क विवाद, विदेशी निवेशकों की बिकवाली और घरेलू आर्थिक चुनौतियाँ हैं। हालांकि, निकट भविष्य में कुछ सुधार की संभावना बनी हुई है, खासकर जब कंपनियों के परिणाम बेहतर होंगे और वैश्विक व्यापार संबंधी अनिश्चितताएँ कम होंगी। निवेशकों को इन सभी घटनाक्रमों का ध्यान रखते हुए सतर्कता से निर्णय लेने की आवश्यकता है।

इसके साथ ही, निवेशकों को यह समझना चाहिए कि बाजार में अस्थिरता के बावजूद, दीर्घकालिक निवेश में संभावनाएँ हमेशा बनी रहती हैं।

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