World Bank ने जारी की ताजा रिपोर्ट: भारत की GDP ग्रोथ 2026-27 में घटकर 6.2% हो सकती है, जानें वजह

विश्व बैंक ने मंगलवार को अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा कि अगर अमेरिका द्वारा लगाए गए उच्च शुल्क की स्थिति बनी रहती है, तो इसका व्यापक असर अगले वित्तीय वर्ष में महसूस किया जा सकता है। इसके तहत भारत की आर्थिक वृद्धि दर (GDP Growth Rate) वित्तीय वर्ष 2026-27 में 20 आधार अंक घटकर 6.2 प्रतिशत तक आ सकती है। हालांकि फिलहाल इस प्रभाव की सीमा सीमित लग रही है, लेकिन लंबे समय तक यह आर्थिक गतिविधियों और निर्यात पर दबाव डाल सकता है।
तत्काल सुधारों की आवश्यकता
विश्व बैंक की दक्षिण एशिया क्षेत्र की मुख्य अर्थशास्त्री फ्रांजiska ओंसॉर्ज़ ने मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए अपने अनुमान को 20 आधार अंक बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है। उनका कहना है कि अप्रैल-जून तिमाही में अपेक्षाकृत उच्च वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत के कारण यह मजबूती दिखाई दे रही है। ओंसॉर्ज़ ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि उच्च अमेरिकी शुल्क के संभावित प्रभाव को कम करने के लिए भारतीय सरकार को संरचनात्मक सुधारों को तेजी से लागू करना होगा। उन्होंने कहा कि सरकार कई स्तरों पर प्रयास कर रही है, विशेष रूप से श्रम बाजार सुधारों की तत्काल आवश्यकता है और इन्हें जमीन स्तर पर लागू करना अनिवार्य है। इसके अलावा, व्यापार समझौतों पर भी बातचीत जारी है, जिससे यह संकेत मिलता है कि सरकार व्यवसायिक माहौल सुधारने के लिए तेजी से काम कर रही है।

RBI का दृष्टिकोण
विश्व बैंक का यह अनुमान भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुमान से थोड़ा कम है। RBI ने अपनी ताज़ा मूल्यांकन रिपोर्ट, जो 1 अक्टूबर को जारी की गई थी, में वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए GDP वृद्धि दर का अनुमान 6.8 प्रतिशत रखा, जो पिछले अनुमान से 30 आधार अंक अधिक है। केंद्रीय बैंक ने छह महीने की मौद्रिक नीति रिपोर्ट में कहा कि यदि मानसून सामान्य बना रहता है और कोई बाहरी या नीति संबंधी झटका नहीं आता है, तो वित्तीय वर्ष 2026-27 में GDP वृद्धि 6.6 प्रतिशत तक पहुँच सकती है।
सुधार और नीति की दिशा
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की आर्थिक वृद्धि को स्थिर बनाए रखने के लिए सरकार को संसाधन आधारित सुधारों को लागू करने के साथ-साथ व्यापार और निवेश को आकर्षित करने वाली नीतियों पर ध्यान देना होगा। उच्च अमेरिकी शुल्क और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता जैसे कारक भारत की निर्यात-निर्भर कंपनियों और रोजगार पर असर डाल सकते हैं। इसलिए, नीति निर्माताओं के लिए यह आवश्यक है कि वे समय पर सुधार लागू करें और व्यापार और उद्योगों के लिए अनुकूल माहौल सुनिश्चित करें, जिससे आर्थिक वृद्धि को लंबे समय तक बनाए रखा जा सके।
