Gold Price: सोना और शेयर बाजार का उलझा खेल, क्या है निवेशकों के लिए सही समय?

Gold Price: सोना हमेशा से निवेशकों के लिए सुरक्षित विकल्प माना गया है। खासकर भारत में, जहाँ सोने के आभूषणों का क्रेज बहुत अधिक है। भारतीय महिलाओं के पास इतना सोना है कि कई विकसित देशों के सरकारी सोने के भंडार भी उनके सामने कम पड़ते हैं। इस साल वैश्विक तनाव बढ़ने के बाद सोने की मांग में तेजी आई है। डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ ऐलान और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता के बीच, डॉलर के मुकाबले सोने की कीमत में 32% की वृद्धि दर्ज की गई।
डॉलर कमजोर और सोने की चमक
जब अमेरिका ने वैश्विक टैरिफ सिस्टम की घोषणा की, तब पिछले एक महीने में सोने ने शानदार प्रदर्शन किया। इसका मुख्य कारण भू-राजनीतिक अस्थिरता और अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की ओर से ब्याज दर में कटौती की संभावना है। इसके अलावा, केंद्रीय बैंक भी अमेरिकी डॉलर भंडार से दूरी बना रहे हैं। इस साल की शुरुआत से डॉलर की कीमत में 11% की गिरावट आई है। यूरोप और जापान में बॉन्ड यील्ड बढ़ने से सरकारी बॉन्ड की मांग में कमी आई है। इस स्थिति में सोना धीरे-धीरे अन्य मुद्राओं की जगह ले रहा है।
सोना मुख्य रिजर्व संपत्ति बन सकता है?
Financial Express की रिपोर्ट के अनुसार, भविष्य में सोना मुख्य रिजर्व संपत्ति बन सकता है, लेकिन फिलहाल यह संभव नहीं लगता। इसके लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति और खराब होनी चाहिए। महंगाई में वृद्धि, व्यापार और GDP में गिरावट जैसी स्थितियाँ आनी चाहिए। हालांकि यह अभी नहीं हुआ है, लेकिन हालिया सोने की तेजी यह दर्शाती है कि कुछ निवेशक और केंद्रीय बैंक चिंतित हैं। यह संकेत देता है कि निवेशक सुरक्षित संपत्ति की ओर बढ़ रहे हैं।
शेयर बाजार और सोने की कहानी में फर्क
इस बीच शेयर बाजार लगातार सकारात्मक संकेत दे रहा है। इस साल निफ्टी 5% ऊपर है और S&P 500 में 9% की बढ़त दर्ज की गई है। अमेरिकी शेयर बाजार रिकॉर्ड स्तर पर है और भारतीय शेयर बाजार भी जून में बनाए गए अपने रिकॉर्ड के करीब है। US VIX इंडेक्स 14.5 और India VIX 10.1 पर है, जो लंबे समय के औसत के करीब या उससे नीचे हैं। यानी शेयर बाजार की स्थिति में कोई गंभीर समस्या नहीं दिख रही। यहाँ एक स्पष्ट असंगति है—सोना, मुद्रा और बॉन्ड बाजार मंदी का संकेत दे रहे हैं, जबकि शेयर बाजार सकारात्मक संकेत दे रहा है।
खुदरा और संस्थागत निवेशकों की भूमिका
इतिहास दर्शाता है कि खुदरा निवेशक अक्सर संस्थागत निवेशकों के मुकाबले गलत साबित होते हैं। खुदरा निवेशक सोने और शेयर दोनों बाजारों में बड़ी संख्या में हैं, जबकि मुद्रा और बॉन्ड बाजारों में उनकी हिस्सेदारी कम है। ये बाजार अधिकतर संस्थागत निवेशकों द्वारा संचालित होते हैं। बॉन्ड और मुद्रा बाजार की चाल देखकर लगता है कि संस्थागत निवेशक अभी भी निराशावादी हैं। चूंकि सोना और शेयर बाजार दोनों बढ़ रहे हैं, इसका मतलब है कि खुदरा निवेशक अधिक आशावादी हैं, लेकिन उन्होंने अपने दांव सुरक्षित रखे हैं। समय ही बताएगा कि कौन सही साबित होता है।